मोटा अनाज मूल्य संवर्धन एवं व्यंजन विधियॉ


मोटे अनाजों विशेषकर कोदो, कुटकी एवं रागी से विभिन्न व्यंजन बनाने की सरल विधियां उपलब्ध न होने के कारण इनका उपयोग कम होता जा रहा है।

मोटे अनाजों विशेषकर कोदो, कुटकी एवं रागी से विभिन्न व्यंजन बनाने की सरल विधियां उपलब्ध न होने के कारण इनका उपयोग कम होता जा रहा है। वर्तमान में कोदो कुटकी रागी खाने की सलाह दी जाती है एवं उनके प्रसंस्करण तथा उनसे आसानी से बनाए जा सकने वाले व्यंजनों की प्रौद्योगिकी उपलब्ध है। 

चूंकि इन धान्यों में कैल्शियम, आयरन, मैंगनीज एवं रेशे की प्रचुरता होती है। अतः बच्चों की वृद्धि एवं विकास हेतु यह अत्यधिक उपयोगी है। बच्चों के लिए विभिन्न व्यंजनों की दृष्टि से उनके द्वारा न्यूट्रेला, पास्ता एवं नूडल्स भी स्वादिष्ट तरीके से बनाकर उनके भोजन में रुचि उत्पन्न की जा सकती है। जिससे उन्हें कुपोषण की स्थिति से बचाया जा सकता है इनके अतिरिक्त मोटे अनाज का उपयोग दूध पिलाने वाली माताएं (धात्री माताएंॅ), बढ़ते बच्चों एवं शिशु के लिए सर्वाेत्तम आहार के रूप में किया जा रहा है। 

जिन लघुधान्यों को हम ग्रामीण जनजाति उपयोग की फसल का भ्रम पाले हुए थे भ्रम से हमें मुक्ति मिल गई है। आज कोदो, कुटकी, रागी के व्यंजनों का उपयोग ज्ञानदान संपन्न घरों में भी हो रहा है। 

भारतीय आध्यात्म तथा धर्म में कहीं ना कहीं इन धान्यों को नगरों की ओर ले जाने का सफल प्रयास भी किया गया। इन फसलों की पौष्टिकता की जानकारी ऋषि मुनियों को पहले से ही थी पर नगर का रहने वाला इसे कैसे खाएं ? अतः धार्मिक मान्यताओं को जन्म देकर इन धान्यों का उपयोग प्रयास किया जा रहा है। जैसे की हलषष्ठी व्रत में पसई चावलों का उपयोग आदि। 

 

आज एक बार पुनः जैविक खेती के प्रति वैज्ञानिकों में आस्था जागृत हुई तब तो इन लघु धान्यों का महत्व और भी बढ़ गया है। क्योंकि इन धान्यों की उपज में पहले भी जैविक खाद का उपयोग हुआ है और आज भी हो रहा है। अतः रासायनिक खाद्यों से पूर्णतः मुक्त फसलें पौष्टिक तो हैं ही इनका शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है


7/18/2024 4:40:31 PM Book Publications 54 Views


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