जैविक खेती मुख्यतः खेती में खेती के पारंपरिक तरीकों के उपयोग के साथ-साथ खेती की परिस्थिति और आधुनिक प्रौद्योगिकी ज्ञान का गठबंधन है। जैविक खेती में कृषक द्वारा प्राकृतिक कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरक के प्रयोग को का विरोध किया जाता है। जैविक खेती में फसल विविधता को प्रोत्साहित किया जाता है, इसके प्रयोग से हम भूमि की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं खरपतवार अर्थात अनावश्यक वनस्पति जो पशु या पौधे के मध्य में अपने आप उग जाती है और फसलों को मिलने वाले पोषण स्वयं उपयोग करती है इनका निपटारा भी जैविक खेती से किया जा सकता है।
वर्तमान समय में कृषि में हो रहे अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग ने सिर्फ पर्यावरण को ही क्षति नहीं पहुंचाई है बल्कि इससे भूमि की उर्वरता का भी हृास हुआ है तथा मानव स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित किया है इन समस्याओं के निदान मानव को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए ब्रिटिश वनस्पति वैज्ञानिक सर अल्बर्ट हावर्ड आधुनिक जैविक खेती के जनक ने अपने कुछ नवीन शोधों के साथ जैविक कृषि का प्रस्ताव रखा जिसके अंतर्गत कृषि में रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक के स्थान पर उर्वरक के रूप में जंतु तथा मानव के अवशेषों का उपयोग होता है इसमें जीवांश खाद पोषक तत्वों (गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, हरी खाद, जीवाणु कल्चर, जैविक खाद आदि) जैव नाषकों बायोपेस्टिसाइड एजेंट आदि का उपयोग किया जाता है जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति लंबे समय तक बनी रहती है। भारत में जैविक खेती कृषि की शुरुआत सबसे पहले मध्य प्रदेश राज्य से सन 2001-2002 में हुई थी इस समय राज्य के सभी जिलों में प्रत्येक विकासखंड में एक गांव में जैविक कृषि का शुभारंभ किया गया था तथा इन गांवों को जैविक गांव नाम दिया गया। जैविक कृषि में सिक्किम भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य बन गया है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसका लगभग 70ः जनसंख्या जीविका उपार्जन के लिए जैविक खेती पर निर्भर है जैविक खेती के उत्पादन में वृद्धि होने से महंगे उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती इसके उपयोग से बीमारियों में कमी आएगी, ग्रामीणों की आय में वृद्धि होगी, खर्चा कम होगा एवं बचत में वृद्धि होगी जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव देश की उन्नति में देखा जा सकेगा।
जैविक खेती हमारे पूर्वजों द्वारा अपनाया गया एक प्राकृतिक तरीका था जिसके अनुसार खेती करने में पदार्थों की गुणवत्ता बनी रहती थी और हमारी खेती के तत्व जैसे जल भूमि वायु और वातावरण में कोई भी प्रदूषण नहीं फैलता था और जैविक और रासायनिक जैविक और अजैविक खेती पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरंतर अपनी गति से चलता रहता था और जैविक खेती तथा खेती पदार्थों के बीच आदान-प्रदान चक्र निरंतर अपनी गति से चलता रहता था।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे जिसमें जैविक खेती के लिए आवश्यक सभी अवयवों का उल्लेख मिलता है जो बिना किसी हानि के लाभ देते थे। गौ-पालन खेती का एक प्रमुख हिस्सा था जिससे खेती और अधिक समृद्ध बन जाती थी।
उत्पादन बढ़ाने के लिए स्पर्धा रसायन और जहरीले खादों के प्रयोग को बढ़ावा देती है मानव स्वास्थ्य के अनुरूप खेती करना आज के समय में चुनौती बन गया है भारतीय किसान जैविक खेती अपनाकर दूसरे किसानों को भी रोजगार दे सकते हैं।